कुसुम ने कुछ बुदबुदाते हुए घर में प्रवेश किया। शर्मा जी ने अखबार के ओट से उसकी तरफ एक नज़र क्या देखा, जैसे कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया हो।
"तुम सुबह से यहीं बैठे हो ? ये चाय का कप भी अभी तक यही पड़ा है ! अखबार तो ऐसे चाटते हो, जैसे, तुमने नही पढ़ा तो अख़बार वालो को इस माह का वेतन नही मिलेगा "
शर्मा जी ने श्रीमती जी को एक दूध-मुए बच्चे की तरह निहारा। आवाज़ सुनकर शर्मा परिवार का इकलौता नौनिहाल कान मे इयर फ़ोन लगाए गाने की धुन पर झूमता हुआ प्रकट हुआ। अब कुसुम की कोप दृष्टि अपने सुपुत्र पर पड़ी।
"और हुज़ूर आप, हां, आप ही से कह रही हूँ, हो गयी सुबह आपकी ? ग्यारह बज रहे हैं। ना नहाना, ना धोना , यहाँ तक कि अभी तक मंजन भी नहीं किया। आग लगे इस मोबाइल को। सारा दिन दोस्तों से चैटिंग करना या कान में मशीन डालकर बंदरो की तरह झूमना। सर्कस बना रखा है पुरे घर को। "
बाप बेटे ने एक दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से निहारा। बेटे ने तुरंत मोबाइल रखकर बाथरूम की शरण लेना श्रेयस्कर समझा। शर्मा जी ने भी बिजली की गति से अखबार बंद किया और किंकर्तव्यविमूढ होकर सोचने लगे कि आखिर माजरा क्या है। कुसुम तो ब्यूटी पार्लर गयी थी। उन्होंने एक बार पुनः श्रीमतीजी की सूरत देखने की धृष्टता की। बाल काले हो गए थे। मुँह का रंग शरीर की तुलना मे ज़्यादा सफ़ेद जान पड़ रहा था। भौंए भी सलीके से लगी थी। हलकी मूछों की रेखा भी गायब थी। हाथ और पैरों के नाखुनो में सुन्दर नेल पोलिश चमक रही थी।जिसका मतलब ये था कि पार्लर की सारी सेवाएं उन्हें मिल चुकी थी।
तो फिर श्रीमति जी का मूड क्यूँ उखड़ा हुआ हैं ?
जब कभी कुसुम पार्लर से आती, तो अगले तीन-चार दिन घर में त्यौहार सा वातावरण रहता। वो मंद-मंद मुस्कुराती, आईने में खुद को निहारती, अलग-अलग हेयर स्टाइल सेट करती और रसोई में गुनगुनाते हुए कुछ नयी रेसेपी try करती। शर्मा जी के निकट आते ही कह उठती, "आप भी न, बच्चों जैसी हरकते करते है। और लज्जाकर रसोईघर का रुख करती।
इस शहद से भी मीठी नवयौवना को आज ये क्या हो गया ! इसी उधेड़ बुन में शर्मा जी अपनी पत्नी के पीछे-पीछे रसोई घर में आये और अपना ब्रम्हास्त्र छोड़ा। श्रीमती जी की कमर से हाथ बढ़ाकर उन्हें आलिंगन बद्ध करके धीरे से कान में बोले "आज तो आप गज़ब ढा रही है बाई गॉड, कौन कहेगा की आप १६ साल के बेटे की माँ है।
शर्मा जी का इतना कहना था कि कुसुम की आखों से अश्रु धारा बह निकली। बच्चों की तरह फफक-फफक के रोने लगी। शर्मा जी की समझ में नही आ रहा था कि ऐसे मे उनको क्या करना चाहिए। पानी का गिलास श्रीमती जी की तरफ बढ़ाया। काफी मनुहार के बाद मामला समझ में आया। श्रीमती जी ने अपनी आप बीती कुछ यु सुनाई:
"तुम्हे पता है मैं पार्लर क्यूँ जाती हूँ ? सुन्दर दिखना और तारीफ पाना हर औरत की इच्छा होती हैं , मेरी भी हैं। मैं अपने आपको मेन्टेन रखना चाहती हूँ हमेशा। ताकि जब कभी पास पड़ोस की औरतें आये तो मेरी सुंदरता की तारीफ करे। मुझसे ईर्ष्या करे। और इसके लिए मैं हर महीने दो-ढाई हज़ार रूपए पार्लर में फूंक आती हूँ। क्या ये दिन देखने के लिए ? आज धूप ज़्यादा थी तो सोचा रिक्शे की जगह ऑटो ले लू। एक ऑटो वाला सामने से जा रहा था। उसी को पुकारा, तो पता है वो क्या बोला ? "कहां जाना है माताजी!! माताजी, my foot! मैं उसकी माताजी ? नालायक मुझसे कम से कम दस साल बड़ा होगा और मुझसे कहता है माताजी !! मैंने उसे खूब खरी खोटी सुनाई, उसे बताया की उसके खुद के पैर कब्र में हैं और मुझे माताजी कहता है ? इतना गुस्सा आया कि पैदल ही घर चली आयी। अभी कुछ ही दिन पहले तक ये रिक्शे और सब्ज़ी वाले मुझे "दीदी" कहते थे। फिर दीदी से "आंटीजी" हो गयी। और आज मैं "माताजी!!"
कुसुम रोती रही और शर्मा जी सोचने लगे :
"तुम सुबह से यहीं बैठे हो ? ये चाय का कप भी अभी तक यही पड़ा है ! अखबार तो ऐसे चाटते हो, जैसे, तुमने नही पढ़ा तो अख़बार वालो को इस माह का वेतन नही मिलेगा "
शर्मा जी ने श्रीमती जी को एक दूध-मुए बच्चे की तरह निहारा। आवाज़ सुनकर शर्मा परिवार का इकलौता नौनिहाल कान मे इयर फ़ोन लगाए गाने की धुन पर झूमता हुआ प्रकट हुआ। अब कुसुम की कोप दृष्टि अपने सुपुत्र पर पड़ी।
"और हुज़ूर आप, हां, आप ही से कह रही हूँ, हो गयी सुबह आपकी ? ग्यारह बज रहे हैं। ना नहाना, ना धोना , यहाँ तक कि अभी तक मंजन भी नहीं किया। आग लगे इस मोबाइल को। सारा दिन दोस्तों से चैटिंग करना या कान में मशीन डालकर बंदरो की तरह झूमना। सर्कस बना रखा है पुरे घर को। "
बाप बेटे ने एक दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से निहारा। बेटे ने तुरंत मोबाइल रखकर बाथरूम की शरण लेना श्रेयस्कर समझा। शर्मा जी ने भी बिजली की गति से अखबार बंद किया और किंकर्तव्यविमूढ होकर सोचने लगे कि आखिर माजरा क्या है। कुसुम तो ब्यूटी पार्लर गयी थी। उन्होंने एक बार पुनः श्रीमतीजी की सूरत देखने की धृष्टता की। बाल काले हो गए थे। मुँह का रंग शरीर की तुलना मे ज़्यादा सफ़ेद जान पड़ रहा था। भौंए भी सलीके से लगी थी। हलकी मूछों की रेखा भी गायब थी। हाथ और पैरों के नाखुनो में सुन्दर नेल पोलिश चमक रही थी।जिसका मतलब ये था कि पार्लर की सारी सेवाएं उन्हें मिल चुकी थी।
तो फिर श्रीमति जी का मूड क्यूँ उखड़ा हुआ हैं ?
जब कभी कुसुम पार्लर से आती, तो अगले तीन-चार दिन घर में त्यौहार सा वातावरण रहता। वो मंद-मंद मुस्कुराती, आईने में खुद को निहारती, अलग-अलग हेयर स्टाइल सेट करती और रसोई में गुनगुनाते हुए कुछ नयी रेसेपी try करती। शर्मा जी के निकट आते ही कह उठती, "आप भी न, बच्चों जैसी हरकते करते है। और लज्जाकर रसोईघर का रुख करती।
इस शहद से भी मीठी नवयौवना को आज ये क्या हो गया ! इसी उधेड़ बुन में शर्मा जी अपनी पत्नी के पीछे-पीछे रसोई घर में आये और अपना ब्रम्हास्त्र छोड़ा। श्रीमती जी की कमर से हाथ बढ़ाकर उन्हें आलिंगन बद्ध करके धीरे से कान में बोले "आज तो आप गज़ब ढा रही है बाई गॉड, कौन कहेगा की आप १६ साल के बेटे की माँ है।
शर्मा जी का इतना कहना था कि कुसुम की आखों से अश्रु धारा बह निकली। बच्चों की तरह फफक-फफक के रोने लगी। शर्मा जी की समझ में नही आ रहा था कि ऐसे मे उनको क्या करना चाहिए। पानी का गिलास श्रीमती जी की तरफ बढ़ाया। काफी मनुहार के बाद मामला समझ में आया। श्रीमती जी ने अपनी आप बीती कुछ यु सुनाई:
"तुम्हे पता है मैं पार्लर क्यूँ जाती हूँ ? सुन्दर दिखना और तारीफ पाना हर औरत की इच्छा होती हैं , मेरी भी हैं। मैं अपने आपको मेन्टेन रखना चाहती हूँ हमेशा। ताकि जब कभी पास पड़ोस की औरतें आये तो मेरी सुंदरता की तारीफ करे। मुझसे ईर्ष्या करे। और इसके लिए मैं हर महीने दो-ढाई हज़ार रूपए पार्लर में फूंक आती हूँ। क्या ये दिन देखने के लिए ? आज धूप ज़्यादा थी तो सोचा रिक्शे की जगह ऑटो ले लू। एक ऑटो वाला सामने से जा रहा था। उसी को पुकारा, तो पता है वो क्या बोला ? "कहां जाना है माताजी!! माताजी, my foot! मैं उसकी माताजी ? नालायक मुझसे कम से कम दस साल बड़ा होगा और मुझसे कहता है माताजी !! मैंने उसे खूब खरी खोटी सुनाई, उसे बताया की उसके खुद के पैर कब्र में हैं और मुझे माताजी कहता है ? इतना गुस्सा आया कि पैदल ही घर चली आयी। अभी कुछ ही दिन पहले तक ये रिक्शे और सब्ज़ी वाले मुझे "दीदी" कहते थे। फिर दीदी से "आंटीजी" हो गयी। और आज मैं "माताजी!!"
कुसुम रोती रही और शर्मा जी सोचने लगे :
"वाह! रे ईश्वर, तेरे खेल निराले ......
कैसे कैसे आइने अपने पिटारे से निकाले"