Friday, July 12, 2019

आइना

कुसुम ने कुछ बुदबुदाते हुए घर में प्रवेश किया। शर्मा जी ने अखबार के ओट से उसकी तरफ एक नज़र क्या देखा, जैसे कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया हो।

"तुम सुबह से यहीं बैठे हो ? ये चाय का कप भी अभी तक यही पड़ा है ! अखबार तो ऐसे चाटते हो, जैसे, तुमने नही पढ़ा तो अख़बार वालो को इस माह का वेतन नही मिलेगा "

शर्मा जी ने श्रीमती जी को एक दूध-मुए  बच्चे की तरह निहारा। आवाज़ सुनकर शर्मा परिवार का इकलौता नौनिहाल कान मे इयर फ़ोन लगाए गाने की धुन पर झूमता हुआ प्रकट हुआ। अब कुसुम की कोप दृष्टि अपने सुपुत्र पर पड़ी।

"और हुज़ूर आप, हां, आप ही से कह रही हूँ, हो गयी सुबह आपकी ? ग्यारह बज रहे हैं। ना नहाना, ना धोना , यहाँ तक कि अभी तक मंजन भी नहीं किया। आग लगे इस मोबाइल को। सारा दिन दोस्तों से चैटिंग करना या कान में मशीन डालकर बंदरो की तरह झूमना। सर्कस बना रखा है पुरे घर को। "

बाप बेटे ने एक दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से निहारा।  बेटे ने तुरंत मोबाइल रखकर बाथरूम की शरण लेना श्रेयस्कर समझा। शर्मा जी ने भी बिजली की गति से अखबार बंद किया और किंकर्तव्यविमूढ होकर सोचने लगे कि आखिर माजरा क्या है। कुसुम तो ब्यूटी पार्लर गयी थी।  उन्होंने एक बार पुनः श्रीमतीजी की सूरत देखने की धृष्टता की। बाल काले हो गए थे। मुँह का रंग शरीर की तुलना मे ज़्यादा सफ़ेद जान पड़ रहा था। भौंए भी सलीके से लगी थी। हलकी मूछों की रेखा भी गायब थी। हाथ और पैरों के नाखुनो में सुन्दर नेल पोलिश चमक रही थी।जिसका मतलब ये था कि पार्लर की सारी सेवाएं उन्हें मिल चुकी थी।

तो फिर श्रीमति जी का मूड क्यूँ उखड़ा हुआ हैं ?

जब कभी कुसुम पार्लर से आती, तो अगले तीन-चार  दिन घर में त्यौहार सा वातावरण रहता। वो मंद-मंद मुस्कुराती, आईने में  खुद को निहारती, अलग-अलग हेयर स्टाइल सेट करती और रसोई में गुनगुनाते हुए कुछ नयी रेसेपी try करती। शर्मा जी के निकट आते ही कह उठती, "आप भी न, बच्चों जैसी हरकते करते है। और लज्जाकर  रसोईघर का रुख करती।

इस शहद से भी मीठी नवयौवना को आज ये क्या हो गया ! इसी उधेड़ बुन में  शर्मा जी अपनी पत्नी के पीछे-पीछे रसोई घर में आये और अपना ब्रम्हास्त्र छोड़ा।  श्रीमती जी की कमर से हाथ बढ़ाकर उन्हें आलिंगन बद्ध करके धीरे से कान में बोले "आज तो आप गज़ब ढा रही है बाई गॉड, कौन कहेगा की आप १६ साल के बेटे की माँ है।

शर्मा जी का इतना कहना था कि  कुसुम की आखों से अश्रु धारा बह निकली।  बच्चों की तरह फफक-फफक के रोने लगी। शर्मा जी की समझ में नही आ रहा था कि ऐसे मे उनको क्या करना चाहिए। पानी का गिलास श्रीमती जी की तरफ बढ़ाया।  काफी मनुहार के बाद मामला समझ में आया। श्रीमती जी ने अपनी आप बीती कुछ यु सुनाई:

"तुम्हे पता है मैं पार्लर क्यूँ जाती हूँ ? सुन्दर दिखना और तारीफ पाना हर औरत की इच्छा होती हैं , मेरी भी हैं। मैं  अपने आपको मेन्टेन रखना चाहती हूँ हमेशा। ताकि जब कभी पास पड़ोस की औरतें आये तो मेरी सुंदरता की तारीफ करे। मुझसे ईर्ष्या करे। और इसके लिए मैं  हर महीने दो-ढाई हज़ार रूपए पार्लर में फूंक आती हूँ। क्या ये दिन देखने के लिए ? आज धूप ज़्यादा थी तो सोचा रिक्शे की जगह ऑटो ले लू।  एक ऑटो वाला सामने से जा रहा था। उसी को पुकारा, तो पता है वो क्या बोला ? "कहां जाना है माताजी!! माताजी, my foot! मैं उसकी  माताजी ? नालायक मुझसे कम से कम  दस साल बड़ा होगा और मुझसे कहता है माताजी !! मैंने उसे खूब खरी खोटी सुनाई, उसे बताया की उसके खुद के पैर कब्र में हैं और मुझे माताजी कहता है ? इतना गुस्सा आया कि पैदल ही घर चली आयी। अभी कुछ ही दिन पहले तक ये रिक्शे और सब्ज़ी वाले मुझे  "दीदी" कहते थे।  फिर दीदी से "आंटीजी" हो गयी। और आज मैं  "माताजी!!"  

कुसुम  रोती रही और शर्मा जी सोचने लगे :
"वाह! रे ईश्वर, तेरे खेल निराले ......
कैसे कैसे आइने अपने पिटारे से निकाले" 
   

Saturday, July 6, 2019

Grammar Recapitulation (Part 2)

Earlier write up [Grammar Recapitulation (Part I)] gave an introduction of 'The Sentence'. In this write up I would further explain 'Kinds of Sentences' in detail:
Kinds of Sentences
There are five different kinds of sentences: Declarative, Imperative, Interrogative, Exclamatory and Optative.
Declarative Sentence
Those sentences which assert something are called Declarative or Assertive Sentences. They can be simply called Statements. A Declarative Sentence ends with a full stop (.) Declarative Sentences are of two types :
  • Affirmative Sentence: Affirmative sentences are those that agree or support  a statement. For example :
  1. I am a teacher.
  2. Earth revolves round the sun.
  3. Ramcharitmanas was written by Tulsidas
  • Negative Sentence : A sentence that negates a particular statement is called a Negative  Sentence. It is not necessary that it would imply something bad. It just conveys that a particular statement is false. For example :
  1. No man is totally perfect.
  2. You will not be able to reach on time.
  3. I haven't prepared for my exams. 
Imperative Sentence
Those sentences which give command, request or advice are called Imperative Sentences. An Imperative Sentence ends with a full stop (.) For example :
  1. Shut the door.
  2. Give me a glass of water please.
  3. You should go to a doctor.
Interrogative Sentence
Those sentences that inquire about something are called Interrogative Sentence. An Interrogative Sentence ends with a question mark (?) For example:
  1. Have you finished your homework?
  2. What is your name?
  3. Who built the Taj Mahal?
Exclamatory Sentence
A sentence that expresses a sudden feeling, such as, pleasure, sorrow, surprise, excitement etc. are called Exclamatory Sentences. An exclamatory sentence ends with an exclamation mark (!)  For example :
  1. What a beautiful dress you are wearing!
  2. How disgusting it is!
  3. Hurrah! We won the match.
Optative Sentence
Those sentences that express wish or blessing are called Optative Sentence. An optative sentence ends with an exclamation mark (!) For example:
  1. May you live long!
  2. I wish I were a bird!
  3. Wish you a happy journey!
* Next write up will cover the topic  Subject and Predicate 
   and also give an introduction to Parts of Speech





       



Friday, June 14, 2019

Grammar Recapitulation (Part I)


When I initiated this blog, I started with a write up in Hindi, about the state of our Indian School Education. Now I wish to address something related to my subject, i.e.  English


English as medium of instruction destroys self-confidence of non-native speakers as they lack basic ability to reason an alien language. Probable consequence is that they  accept the English word without question. This leads to the deculturation of millions who receive such education. To learn a language, it is not necessary that the language should be the medium. 

To be precise, near complete absence of any emphasis on grammar, writing and composition skills give away your real proficiency level in the given language.

Generally, we, in India start learning the rules of grammar from class 1st and each year children go on studying the same grammar topics further, with more elaborated rules and exercises. It so happens that by the time children come to their main exams, i.e. first board (class 10), they tend to forget the basic grammar and many a times are unable to frame proper sentences and are at loss to know why. So lets recapitulate "English Grammar" from scratch.


Oxford Dictionary says "Grammar is the way in which words are put together to form proper sentences."

In Grammar the first lesson that we learn is the building up of proper sentence with the help of meaningful words. Words are made up of letters. 


Difference between 'Alphabet' and 'Letter' : Alphabet is a collection of letters. A letter is a particular symbol used in writing.

Thus  
        Letter -       "A" 
        Alphabet - "ABCDEFGHIJKLMNOPQRSTUVWXYZ "

In this manner there are 26 letters in English Alphabet : a, b, c, d, e, f, g, h, i, j, k, l, m, n, o, p, q, r, s, t, u, v, w, x, y, z. 
Five letters are vowels and rest are consonants.

Vowels         - a, e, i, o, u 
Consonants -  b, c, d, f, g, h, j, k, l, m, n, p, q, r, s, t, v, w, x, y, z

word is framed when letters are put together in a proper order that makes sense. eg. 'lpya' is not a word while 'play' is a word.

Similarly, a sentence is framed when words are put together in a proper order that makes sense. Thus, 'good a Ram is boy' is not a sentence, because these group of words do not give any sense. Where as 'Ram is a good boy.' is a sentence because it makes sense.

Kinds of Sentences :
  • Declarative 
  • Imperative
  • Interrogative
  • Exclamatory
  • Optative 
* Next write up will explain in detail the Kinds of Sentences
                                                               


Friday, June 7, 2019

माँ हो मेरी

आप सबने आज तक उस जन्म दात्री माँ के विषय में बहुत कुछ लिखा, पढ़ा एवं सुना है। निसंदेह उस माँ की कोई तुलना नही हो सकती। वो अपने  त्याग, ममता, निस्वार्थ भाव के कारण अनुठी ही होती है। परन्तु आज मैं अपनी एक और माँ से आपका परिचय करवाना चाहती हूँ।

हिंदी फिल्म में  ललिता पवार, बिंदु और शशि कला ने जिस चरित्र को मूर्त रूप दिया 😜😜  आज उसे मेरी नज़रों से देखिये :--

सास नहीं तुम माँ हो मेरी, ऐसा प्रतीत होता है ,
दिन प्रतिदिन विश्वास ये मेरा, और गहरा हो जाता है 
आघात मुझे पर दर्द तुझे ये, कैसे संभव होता है,
जन्म नहीं दिया तूने, फिर भी प्यार उमड़ आता है 

व्यथित धूप से जब घर में , कदम ये मेरा पड़ता है ,  
लिए आम का पना हाथ में, तू झट से आ जाती है।     
पूर्व जन्म का कोई रिश्ता, अधूरा छूटा प्यार हो जैसे, 
इस जन्म में वही रिश्ता, हर पल निभा जाती है 

फटकार लगाकर मिथ्या गुस्सा, आखों से दिखलाती है,
मुझे सुधारने की कोशिश में, व्यर्थ समय गवाती है। 
विश्वास करो मैं नही सुधरूंगी, प्रयास करो तुम जितना भी, 
क्योकि अगर मै सुधर गयी तो, अपना स्थान तुम खो दोगी

बड़े होने पर उनसे बड़े सब, उन्हें छोड़ चले जाते है,
यही दुनिया की रीत है कहकर, ढाढस उन्हें बधाते है   
नहीं होना मुझे बड़ा, मैं ऐसे ही गलतियां करुँगी, 
हर दिन कुछ नए ढंग से, फटकार तुम्हारी सुन लुंगी।। 

सच कहती हूँ दिल से निकल, आवाज़ ये गहराया है। 
सात फेरों के चक्कर में, रिश्ता नया बनाया है
एक माँ का घर छूटा, दूजी को अपनाया है,
खोने पाने के इस धुन में, गृहस्थी को सजाया है

अंत में फिर वही दोहराकर, कविता का अंत करती हूँ।  
सास नहीं तुम माँ हो मेरी, हाँ, दिल से यह कहती  हूँ।।








Tuesday, June 4, 2019

शिक्षा, आज कल

                                                       

मै एक शिक्षिका हूँ , पब्लिक स्कूल शिक्षा व्यवस्था के साथ एक लम्बे समय से जुडी हुई हूँ । रोज़ की इस भागदौड़ से खुद के लिए चुराए दो पलों में कुछ लिखती रहती हूँ जिसे आधुनिक संचार माध्यम के एक बड़े प्लेटफार्म (ब्लॉग) के द्वारा अब आप लोगो से भी शेयर करूंगी। मेरे इन अड़तालिस वर्षों में ज़िन्दगी के कई पहलुओं से मेरा साक्षात्कार हुआ, जिसमे से कुछ एक से आपका परिचय करवाती हूँ। 

ख़ैर आज जिस विषय को लिखने की सोची वो है - शिक्षा, आज कल। पब्लिक स्कूल में पढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त किया है अतः भांति-भांति के विद्यार्थियों से प्रतिदिन पाला पड़ता रहा है।  इस क्षेत्र में मेरा अनुभव उन डाक्टरों से किंचित मात्र भी कम नहीं जो सरकारी मेडिकल कॉलेज में हाथ साफ़ करते है. (Pun intended)

  • मध्यम वर्गीय सरकारी कर्मचारियों के बच्चें जो अपने अभिभावकों की तरह सरकारी नौकर बनने का सपना लिए स्कूल आते हैं। 
  • पारम्परिक व्यवसायी परिवारों के बच्चें, जो मानसिक रूप से स्पष्ट रहते है कि उन्हें भविष्य में परिवार के व्यवसाय को ही आगे बढ़ाना है।  
  • बिगड़ैल बाप (माताओं को हल्के में  न लीजिये) के बिगड़ैल बच्चे, जिनके लिए स्कूल मात्र रौब झाड़ने और कैंटीन में  ब्रेड-पकौड़ा, फ्रूटी और समोसा उड़ाने के अलावा कुछ भी नहीं। 
  • अपनी शारीरिक अक्षमताओं को दर किनार कर ऊँची उड़ान भरने का दम रखने वाले बच्चें।   
  • इंट्रोवर्ट बच्चें जो कक्षा में वो कोना ढूँढ़ते है जहां टीचर की नज़र ना पड़े।  
  • लव बर्ड्स जो एक दूसरे को ऐसे निहारते है जैसे किसान अपनी फसल निहारता है। 
जितने तरह के बच्चें उतने तरह के माता-पिता जिनके दर्शन का लाभ हमे पेरेंट्स टीचर मीटिंग में होता है  :
  • कुछ पिता तो केवल अपना कर्तव्य पालन करने आते है।  उनको अपने बच्चे  की पढाई के बारे में किंचित मात्र भी जानने की उत्सुकता नहीं होतीं, यहाँ तक कि उनको यह भी नहीं पता होता की उनके बच्चे का एग्जाम कब हुआ।  वो तो अपनी पत्नी से प्रताड़ित होकर केवल हाजरी लगाने आते हैं। 
  • कुछ माताएं सीधे ब्यूटी पार्लर से कक्षा में लैंड करती है।  उनको इसी बात की बेहद ख़ुशी होती है को वो अपना नया सूट, साडी, जीन्स या हेयर स्टाइल दूसरे अभिभावकों को दिखा सकी।  
  • कुछ अभिभावकों को युद्ध का बिगुल बजाते हुए कक्षा में  प्रवेश करना ज़्यादा श्रेयस्कर लगता है।  उनके बच्चे को पढ़ाने वाले हर शिक्षक के लिए विशेष टिप्पड़ी करना और स्कूल एवं मैनेजमेंट का पोस्टमॉर्टेम करना अपना नितांत कर्त्तव्य समझते हैं।  
  • कुछ ऐसी माताएँ होती है जो बाल सुलभ ढंग से अपने बच्चे की शिकायत करती है - मैडम ये दूध नहीं पीता, हरी सब्ज़ियां नहीं खाता, सारा दिन टीवी और मोबाइल लेकर बैठा रहता है। मेरी तो सुनता ही नहीं। आप ही कुछ समझाइये .......
  • कुछ माताएं अपने बच्चे के डिप्रेशन की गाथा पढ़ने के लिए स्कूल आती है कि  कैसे उनका बच्चा पूरे दिन रोता रहा क्युकि फलां टीचर ने उसे डाट दिया। 
हमे याद आता है अपना बचपन जब हम स्कूल में थे, तो पिटाई या यूँ  कहिये सुताई तो आम बात थी।  कोई भी शिक्षक कभी भी कक्षा में किसी भी बच्चे के गाल पर अपना ऑटोग्राफ देकर चला जाता।  कभी हिम्मत नहीं पड़ी कि घर जाकर शिकायत करे क्योंकि ये बात तो तय थी कि घर का कोई  भी सदस्य इस बात को लेकर स्कूल नहीं जायेगा, अपितु एक और थप्पड़ पड़ने की पूरी गुंजाईश होती।  साथ में ये भी सुनने को मिलता कि अच्छा किया जो मारा, तुम  जैसों को यही सजा मिलनी चाहिए।  आज सोचते है कि हम कभी डिप्रेशन में क्यों नहीं  गए ?

हमारे समय में  फर्स्ट डिवीज़न यदा कदा आते थे। वो भी ६० या ज़्यादा से ज़्यादा ७०%।  बोर्ड के परिणाम  के दिन पूरा मोहल्ला इकठ्ठा होता, बनर्जी साहब को, होनहार बेटी की बधाई देने के लिए।  आज ९०% रेज़ल्ट पर लोग मुँह पे बोलते है, "जी छोटा मत करो, कोई बात नहीं, अगली बार अच्छा करेगा"। और जनाब बच्चों का कॉन्फिडेंस तो देखिये ५०० में ४९९ अंक मिलने पर, उस एक अंक के लिए स्क्रूटिनी करवाते है!   

सोचती हूँ कहाँ लेकर जा रही ये शिक्षा इन बच्चों को?  क्या भविष्य है इनका?  कब तक दौड़ते रहेंगे और मंज़िल ही क्या है इनकी? अपने सपनों को पाने की  मृग मरीचिका क्या इन्हें ज़िन्दगी की छोटी- छोटी  खुशियों से वंचित नही कर रही ? अपने माता-पिता, भाई, बंधुओं  से दूर एक अनजान राह की तलाश में भटकते ये बच्चें अपनी योग्यता का सदुपयोग नही दोहन कर रहे हैं। ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि इन्हें सदबुद्धी  प्रदान करे और अपने बहुमूल्य जीवन की वास्तविक खुशियों को अनुभव करवायें। इन स्मृतियों को सहेजे, रिश्तो को जीना सीखे, निभाना नहीं।    

आइना

कुसुम ने कुछ बुदबुदाते हुए घर में प्रवेश किया। शर्मा जी ने अखबार के ओट से उसकी तरफ एक नज़र क्या देखा, जैसे कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया हो। &q...